2020 New 17 best motivational poems in hindi for success
2020 New 17 best motivational poems in hindi for success
नमस्कार दोस्तों आपका हामारे हिन्दी ब्लॉग himachaljosh.in पे स्वागत है दोस्तों आज मई आपके लिए ले के आया 17 बेस्ट motivational moems हिन्दी मे जो कि मई आशा करता हूँ कि आपको बहुत पसंद आने वाली है और इन hindi motivational poems को पड़कर आपके जीवन मे जरूर बदलाव आएगा
अगर आपको यह कविताएं पसंद आए तो अपने दोस्त भाइयों बहनों और उन सबके साथ शेयर करें और उनकी जिंदगी मे भी एक मार्गदर्शक बानके उबरें। तो दसोंटों बिना आपका समय लिए शुरू करते हैं उन बेहतरीन कविताओं को
1.
मिल सके असाई से इसकी ख्वाहिश किसे है
मिल सके असाई से इसकी ख्वाहिश किसे है
जिद तो इसकी है जो मुक्कादार मे लिखा ही नहीं
2
खुद से जीतने की जिद है
खुद से ही जीतने कि जिद है
मुझे खुद कि ही हराना है
मई भीड़ नहीं हूँ दुनीया की
मेरे अंदर इक जमाना है
3.
व्क्त से पहले हादसों से लड़ा हूँ
वक्त से पहले हादसों से लड़ा हूँ
मई अपनी उम्र से कै साल बड़ा हूँ
4.
हसना आता है मुझे
मुझसे गम की बात नहीं होती
मेरी बातों मे मजाक होता है
पर मेरी हर बात मजाक नहीं होती
5.
कुछ व्क्त की खामोशी है फिर शोर आएगा
कुछ वक्त की खामोशी है फिर शोर आएगा
तुम्हारा सिर्फ व्यक्त आया है हमारा दौर आएगा
6.
कभी दर्द है तो दुआ नहीं
जो दुआ मिली तो शफ़ा नहीं
वो जुल्म करते हैं कुछ इस तरह
जैसे मेरा कोई खुदा नहीं
7. शाख से जो गिर जाए हम वो पत्ते नहीं
शाख से जो गिर जाए हम वो पत्ते नहीं
आंधीयों से कह दो अपनी औकात मे रहे
8.
शाखें अगर गिर रही है तो पत्ते भी आएंगे
यह दिन अगर बुरे है तो अछे भी आएंगे
9.
ख्वाहिशों का कैदी हूँ मुझे हक़ीक़तें सजा देती है
आसान चीजों का शौक नहीं
आसान चीजों का शौक नहीं
मुझे मुश्किलें मजा देती है
10.
हर रोज गिर कर भी मुकम्मल खड़े हैं
हर रोज गिर कर भी मुकम्मल खड़े हैं
ये जिंदगी देख मेरे हौंसले तुझसे भी बड़े हैं
यह कहानी जरूर पढ़ें आपकी जिंदगी बदल जाएगी
11. सूरमा नहीं विचलित होते
सच है विपत्ति जब आती है,कायर को ही दहलाती है
सूरमा नहीं विचलित होते,क्षण एक नहीं धीरज खोते
विगनों को गले लगाते हैं,
काँटों मे राह बानाते हैं
मुह से न कभी उफ्फ़ करते हैं
संकट का चरण न गाहते है
जो आ पड़ता है सब सहते हैं
उद्योग निरत नित रहते हैं
शूलों का मूल नसाते हैं ,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं ।
है कौन विद्वान ऐसा जंग मे
टिक सके आदमी के मग मे
कहां ठोक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाँव उखड़
मानव जब जोर लगायत है
पथर पानी बन जाता है
गुण बड़े एक से एक प्रखर,
है छिपे मानवों के भीतर
मेहंदी मे जैसे लाली हो
वर्तिका बीच उजजीयली हो
बत्ती जो नहीं जलाता है
रोशनी वही नहीं पाता है
12. मै तूफ़ानों मे चलने का आदि हूँ
मै तूफ़ानों मे चलने का आदि हूँ..
तुम मेरी मुश्किल मत आसान करो..
है फूल मुझे रोकते कांटे है चलाते..
मरुस्थल पहाड़ चलने की चाह बड़ाते..
सच कहूँ जब मुश्किलें नहीं होती है..
मेरे पग तब चलने मे भी शरमाते है..
मेरे संग चलने लगे हवाएं जिससे..
तुम पथ के कण कण को तूफान करो..
अंगार अधर पे धर मै मुस्कराया हूँ ..
मै मरघट से जिंदगी बुला के लाया हूँ ..
100 बार मृत्यु के गले चूम कर आया हूँ ..
है नहीं अपनी दया भी स्वीकार मुझे..
तुम मुझपर मत कोई एहसान करो
शर्म के जल से राह सदा सींचती है..
गली की मशाल आंदहू मे ही हँसती है..
शोलों से ही शृंगार पथों का होता है ..
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है..
पग मे गति आती है छाले छीलने से..
तुम पग पग पर जलती चट्टान धरो..
मै तूफ़ानों मे चलने का आदि हूँ
तुम मेरी मुश्किल मत आसान करो..
13. तूफ़ानों की ओर घूम दो निज नाविक पतवार
तूफ़ानों की ओर घूम दो निज नाविक पतवार
तूफ़ानों की ओर घूम दो निज नाविक पतवार
आज सिंधु ने विश उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज ह्रदय और सिंधु मे साथ उठाया है जवार
लहरों के स्वर मे कुछ बोलो
इस अठण्ड मे साहस तोलो
कभी कभी मिलता जीवन मे तूफ़ानों का प्यार
तूफ़ानों की ओर घूम दो नाविक निज पतवार
सागर की अपनी क्षमता है
लेकिन माझी भी कहाँ थकता है
जब तक साँसों मे संदपन है
उसका हाथ भी नहीं रुकता है
इसके बाल पर ही कर डाले
सातों सागर पार
तूफ़ानों की ओर घूम दो निज नाविक पतवार
14. आज तू बिखरा है एक दिन तू निखरेगा
आज तू बिखरा है एक दिन तू निखरेगा ही
आज तू बिखरा है एक दिन तू निखरेगा ही
ढला है जो सूरज कल सुबह निकलेगा ही
माना तेरी मंजिले इन लोहे की जंजीरों मे है
पर तू तपेगा जब तेरी तपन से,वो लोहा भी पिघलेगा ही
मंजिलों के रास्तों मे कांटे तो सभी के है
मंजिलों के रास्तों मे कांटे तो सभी के है
पर तेरे एण्ड जुनून है,तू काँटों पर चलेगा ही
माना आज तू बिखरा है एक दिन तू निखरेगा ही
ढलता है जो आज सूरज कल सुबह निकलेगा ही
हवाएं विपरीत ही क्यों न चले तू कदम कदम बदेगा ही
हवाएं विपरीत ही क्यों न चले तू कदम कदम बदेगा ही
तुझे कल के लिए है तैयार होना तो आज तू गिरेगा ही
तेरी कोशिश देख हवाओं का रुख तो बदलेगा ही
तेरी कोशिश देख हवाओं का रुख तो बदलेगा ही
माना आज तू बिखरा है एक दिन तू निखरेगा ही
ढलता है जो आज सूरज कल सुबह निकलेगा ही
15.
हर चीज वो तोलते है वो बाजार कि तरह
उनकी दुआ सलाम है व्यापार की तरह
मुद्दे कि बात पहले जहां थी वहीं रही
आए भी वो गए भी वो खबार की तरह
खुशियां तो हमें सिर्फ खीयकी पुलाव है
मुफलिस के घर मे ईद के त्योहार की तरह
यूं सरसरी निगाह से देखा ना करे जनाब
पढिए न मुझको मांग के अखबार की तरह
चट्टान बाँके सामने आए जो थे कभी
गिरने लगे वो रेट की दीवार की तरह
अपना गुरूर छोड़ के मिलते हैं जब मिजाज
उनका वजूद लगता है गुलजार की तरह
16. तुम मुझे कब तक रोकोगे-motivational poem by amitabh bachchan in hindi
मुठ्ठी मे कुछ सपने लेकर भर के जीवन मे अशाएं
दिल मे है अरमान यही कुछ कर जाएं कुछ कर जाएं
सूरज सा तेज नहीं मुझ मे दीपक सा जलता देखोगे
सूरज सा तेज नहीं मुझ मे दीपक सा जलता देखोगे
अपनी हद्द रोशन करने से तुम मुझे कब तक रोकोगे
तुम मुझे कब तक रोकोगे
मै उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों मे सींचा है ‘
मै उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों मे सींचा है ‘
बंजर माटी मे पलकर माने मृत्यु से जीवन खींचा है
मै पथर पर लिखी इबादत हूँ शीशे से कब तक तोड़ोगे
मै पथर पर लिखी इबादत हूँ शीशे से कब तक तोड़ोगे
मिटने वाला मैं नाम नहीं तुम मुझको कब तक रोकोगे
17. खुद पर हो विश्वास अगर
बस तू ही है इस दुनिया मे तुझ सा है कोई और कहाँ
बस तू ही है इस दुनिया मे तुझ सा है कोई और कहाँ
अगर हो न भरोसा बात मे तो तू भी यहाँ मई भी यहाँ
तेरे हुंकार मे वो दम है..तेरे हुंकार मे वो दम है
सारी सदुनिया थम जाए खुद पर हो विश्वास अगर
खुद पर हो विश्वास अगर एक पल क्या व्यक्त बदल जाए..
व्यक्त बदल जाए
जीवन मे सजे है कुछ सपने हर हाल मे पूरे करने है
जीवन मे सजे है कुछ सपने हर हाल मे पूरे करने है
सागर के नीचे दबे है मोती वो रखने है तो रखने है
घेरा हो हजारों मुश्किल का।। घेर हो हजारों मुश्किल का
मेहनत से सब झुकने है
सूरज पर छाए बादल भी एक दिन छटने है
क्या हुआ नहीं जो हो न सका ऐसा कुछ ढूंढ के लाए
खुद पर हो विश्वास अगर एक पल क्या व्क्त बदल जाए
एक पल क्या वक्त बदल जाए
सब कुछ तो कर आसान है .. सब कुछ तो कर आसान है
रोके तो कोई आज भला
झोंके मे छुपा है जैसे तूफान वासे ही हममे जोश भरा है
हो व्क्त का पहरा मुझपर क्यों.. हो व्क्त का पहरा मुझपर क्यों
हम व्क्त से आगे रहते हैं
धरती पर यूं तो चलते हैं पर आसमान पर रहते हैं
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